धनप्राप्ति के लिए स्वर्ण भैरव मंत्र प्रयोग, दरिद्रता नाश के लिए अचूक प्रयोग, स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र, दुर्भाग्य दूर करता है स्वर्णाकर्षण भैरव का मंत्र जप |
अगर दुर्भाग्य पीछा नहीं छोड़ रहा है, कर्जा बढ़ता जा रहा है, कुंडली में धन भाव कमजोर है तो ऐसे में जातक नरक का जीवन व्यतीत करता है | ऐसी अवस्था में साधारण पूजा पाठ काम नहीं आते हैं और निराशा बढती चली जाती है |
ऐसी अवस्था में एक अचूक प्रयोग है जिसका वर्णन रुद्रयामल तंत्र में किया गया है | ये प्रयोग है स्वर्णाकर्षण भैरव की पूजा | भगवान् शिव ने नंदीजी को इस चमत्कारी प्रयोग के बारे में बताया था |
स्वर्णाकर्षण भैरव जी ने कुबेर के खजाने को भी भरा था |
swarnakarshan bhairav mantra prayog |
आइये जानते हैं इनके बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण बाते :
Swarnakarshan bhairav कालभैरव का सात्विक रूप है अतः इनकी पूजा में डरने जैसी कोई बात नहीं है | इनका निवास पाताल में माना जाता है | इनकी पूजा में सात्विक पदार्थ ही स्तेमाल होते हैं जैसे दूध, मेवे |
- मांस –मदीरा वर्जित है इनकी पूजा में |
- इनकी साधना मध्य रात्री में की जाती है |
- किसी भी प्रकार की दरिद्रता हो वो सब समाप्त होते हैं स्वर्णाकर्षण भैरव की पूजा से |
- इनकी पूजा उत्तर दिशा की और मुंह करके की जाती है |
स्वर्णाकर्षण भैरव साधना कैसे करें :
सबसे पहले स्थान शुद्ध करके आसन शुद्धि करे फिर विनियोग करें –
विनियोग मन्त्र इस प्रकार है –
।। ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरव महामंत्रस्य श्री महाभैरव ब्रह्मा ऋषिः , त्रिष्टुप्छन्दः , त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षणभैरवो देवता, ह्रीं बीजं , सः शक्तिः, वं कीलकं मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।
अब ऋष्यादिन्यास करें :
बाए हाथ मे जल लेकर दहिने हाथ के उंगलियों को जल से स्पर्श करके मंत्र मे दिये हुए शरिर के स्थानो पर स्पर्श करे।
श्री महाभैरव ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि।
त्रिष्टुप छ्न्दसे नमः मुखे।
श्री त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव देवतायै नमः ह्रदिः।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।
सः शक्तये नमः पादयोः।
वं कीलकाय नमः नाभौ।
मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
अब करन्यास करें :
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ऐं तर्जनीभ्यां नमः।
क्लां ह्रां मध्याभ्यां नमः।
क्लीं ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
क्लूं ह्रूं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
सं वं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
अब हृदयादि न्यास करें :
आपदुद्धारणाय हृदयाय नमः।
अजामल वधाय शिरसे स्वाहा।
लोकेश्वराय शिखायै वषट्।
स्वर्णाकर्षण भैरवाय कवचाय हुम्।
मम् दारिद्र्य विद्वेषणाय नेत्रत्रयाय वौषट्।
श्रीमहाभैरवाय नमः अस्त्राय फट्।
रं रं रं ज्वलत्प्रकाशाय नमः इति दिग्बन्धः।
अब स्वर्णाकर्षणभैरव का ध्यान करें :
ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्।
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम्॥
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्।
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः।
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा॥
हिंदी अर्थ – श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी सफेद आक के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं। उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं। उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं। उनके तीन नेत्र हैं। चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण — माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है। वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं। आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा वृष्टि करें।
अब स्वर्णाकर्षणभैरव जी की मानसिक पूजा करें :
लं पृथिव्यात्मने गंधतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं गंधं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
हं आकाशात्मने शब्दतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं पुष्पं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
यं वायव्यात्मने स्पर्शतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं धूपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
रं वह्न्यात्मने रूपतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं दीपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
वं अमृतात्मने रसतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं अमृतमहानैवेद्यं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
सं सर्वात्मने ताम्बूलादि सर्वोपचारान् पूजां श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
dhanprapti ke liye swarnakarshan bhairav prayog, daridrata naash ke liye achook prayog, swarnakarshan bhairav strot, durbhagyanaashak prayog.
अब अब स्वर्णाकर्षणभैरव मंत्र का जप कर सकते हैं :-
ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महाभैरवाय नम:।
om aim klaam kleem klum hraam hreem hoom sah vam aapaduddhaaranaay ajaamalawadhaay lokeshwaraay swarnaakarshan bhairawaay mam daaridrya vidhweshanaay om hreem mahaabhairawaay namah
मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का एक पाठ अवश्य करे।
स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र
।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।।
भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !
पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं ।
तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।।
तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।।
।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।
इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !
स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये ।।
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ।
दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् ।।
अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् ।
महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् ।।
महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।
न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा ।।
शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने ।
महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च ।।
निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् ।
स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।।
श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् ।।
विनियोगः– ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।
ध्यानः-
मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते ।
दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः ।।
भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् ।
स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।
।। स्तोत्र-पाठ ।।
ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने,
नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने ।।
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ।
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः ।।
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ।
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।।
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।
अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः ।।
नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ।
श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।।
दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः ।
नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।।
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।
नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः ।
नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ।
नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।।
नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने ।
गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।।
नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ।
नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ।
सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।।
रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च ।
नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।।
नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।।
नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ।
नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।
नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ।
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।
नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः ।
नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ।
नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः ।।
नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे ।
नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः ।।
नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने ।
नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने ।।
नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः ।
नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः ।।
द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः ।।
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।।
नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ।
नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ।
नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।
नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ।
नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे ।।
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने ।
कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।
भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।
नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।
स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !
पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !
श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् ।
प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा ।।
।। फल-श्रुति ।।
श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् ।
मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् ।।
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते ।
लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ।।
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् ।
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः ।।
संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः ।
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ।
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।
इसके बाद स्वर्णाकर्षणभैरव जी से दुःख और दरिद्रता नाश के लिए प्रार्थना करनी चाहिए |
इस प्रकार पुरे विधि विधान से पूजन करने से निश्चित रूप से 41 दिनों में चमत्कारीक रूपसे जीवन बदलने लगता है |
- आय के स्त्रोत खुलते हैं|
- किसी का किया कराया ध्वस्त होता है |
- रोगों से मुक्ति मिलती है |
- कुशाग्र बुद्धि की प्राप्ति होती है |
- शत्रु का नाश होता है |
धनप्राप्ति के लिए स्वर्ण भैरव मंत्र प्रयोग, दरिद्रता नाश के लिए अचूक प्रयोग, स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र, दुर्भाग्य दूर करता है स्वर्णाकर्षण भैरव का मंत्र जप |